राष्ट्र निर्माण में साहित्य की भूमिका और उसकी प्रासंगिकता
मनोज कुमार
शोधार्थी (पी.एच.डी) हिंदी
दिल्ली विश्वविद्यालय
9868310402
शोध सार–
किसी भी राष्ट्र के निर्माण में साहित्य की भूमिका सर्वोच्च होती है. वर्तमान में भारत अपने नवनिर्माण की ओर अग्रसर है, बौद्धिक भ्रम से मुक्त हो रहा है, सर्जना के साधकों की जवाबदेही और ज़िम्मेदारी दोनों ही इस समय बढ़ी हुई हैं, क्योंकि बुद्धि पर बुद्ध की कलाई लगाने की आवश्यकता है। अपने वंशजों की संरचनाओं से इस ढाँचे को अलंकृत करने की महत्ती आवश्यकता है। साहित्य मानव समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रतिबिंबित करता है और समाज के नवनिर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साहित्य न केवल मनुष्य के विचारों, भावनाओं, और अनुभवों का संग्रह है, बल्कि यह समाज के सुधार और विकास का एक सशक्त माध्यम भी है। साहित्य वह सशक्त माध्यम है, जिसका व्यापक रूप से समाज पर प्रभाव पड़ता है। यह समाज में प्रबोधन की प्रक्रिया का सूत्रपात करता है। लोगों को जाग्रत करने का कार्य करता है और जहाँ एक ओर यह सत्य के सुखद परिणामों को रेखांकित करता है, वहीं असत्य का दुखद अंत कर सीख व शिक्षा प्रदान करता है। अच्छा साहित्य व्यक्ति और उसके चरित्र निर्माण में भी सहायक होता है। इसी कारण है समाज के नवनिर्माण में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इससे समाज के दिशा-बोध, मार्गदर्शन के साथ-साथ उसका नवनिर्माण भी होता है।
बीज शब्द- साहित्य, नवनिर्माण, समाज, अभिव्यक्ति, सुधार, शताब्दी, माध्यम, प्रक्रिया
DOI link – https://doi.org/10.69758/GIMRJ/2503I3VXIIIP0003
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