पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों के सामाजिक-आर्थिक स्थिति का उनके बच्चों की शिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन
डॉ. राजकुमारी गजपाल,
अतिथि व्यख्याता, समाजशास्त्र विभाग,
शहीद दुर्वासा निषाद शासकीय महाविद्यालय, अर्जुन्दा, (बालोद)
सारांश
शिक्षा किसी भी राष्ट्र की ध्ूारी है, जिस पर उसके विकास का चक्र घूमता है, राष्ट्र जन मानसिक क्षितिज का विस्तार देकर, उन्हें प्रत्येक क्षेत्र में कार्य सक्षम बनाना शिक्षा का उपहार है। शिक्षा को मानवीय जीवन का ज्योतिर्मय पक्ष माना है, जिससे मानव के व्यक्तित्व का चतुर्मुखी विकास होता है। शिक्षा मानव के बौद्धिक तथा सामाजिक विकास में जन्म से चल रही प्रक्रिया है। मानव जन्म से लेकर मृत्यु तक जो कुछ सीखता है या करता है वह शिक्षा के माध्यम से ही करता है। प्राचीन काल में शिक्षा को न तो पुस्तकीय ज्ञान का पर्यायवाची माना गया और न ही जीवकोपार्जन का साधन है वरन् शिक्षा को वह प्रकाश माना गया है जो व्यक्ति को उत्तम जीवन व्यतीत करने व मोक्ष प्राप्त करने का साधन माना है।
पलायन और बच्चों की षिक्षा मंे धनात्मक संबंध होता है अर्थात् पलायन के दर में वृद्धि से निरक्षता में भी वृद्धि होती है, क्योंकि सामान्यतौर पर पलायन नंवबर से मार्च माह के बीच किया जाता है और इस अवधि में बच्चे स्कूल में पढ़ रहे होते हंै और पलायन करने पर उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है और ये मजदूर जिन महानगरों या छोटे नगरों में प्रवास करते हंै, वहंा यह संभव नहीं हो पाता कि ये बच्चों को दाखिला दिला सकें, क्योंकि इन बच्चों की षिक्षा का प्रबंध कोई भी विद्यालय द्वारा नहीं किया जा सकता है, परिणामतः बच्चे केवल छोटे बच्चों की रखवाली और खाना बनाने के कार्य में संलग्न रह जाते हंै और यहीं से निरक्षरता की षुरूआत होती है। यह सिलसिला लगातार कुछ वर्षों (5-10) तक चलने के बाद स्वाभाविक रूप से बाल श्रमिक के रूप में बदलकर बंद हो जाती है। वह बच्चा फिर दुबारा स्कूल जाने के विषय में सोच भी नहीं पाता है, इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए अध्ययन हेतु इस विषय का चुनाव किया गया है।
DOI link – https://doi.org/10.69758/GIMRJ/2503I3VXIIIP0002
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