समकालीन हिंदी साहित्य में किन्नर विमर्श

समकालीन हिंदी साहित्य में किन्नर विमर्श

प्रा.डॉ. जाधव के.के.

सहयोगी प्राध्यापक

पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होळकर महाविद्यालय राणीसावरगाव,ता.गंगाखेड जि.परभणी(महा.)

Email ID – kkjadhav07@gmail.com

Mob No- 9421051807 & 8623870907

Received on: 16 May ,2024          Revised on: 20 June ,2024          Published on: 30 June ,2024

शोधसार : समकालीन हिंदी साहित्य में किन्नर विमर्श पर चिंतन हों रहा है।आज का साहित्यकार हिजड़ा कहे जाने वाले किन्नर समुदाय को केंद्र में रखकर उपन्यास लेखन कर रहा है। किन्नर संबंधी प्रसिद्ध उपन्यासों में-यमदीप,गुलाल मंडी,किन्नर कथा,जिंदगी 50-50,मैं भी औरत हूं,मैं पायल,पोस्ट बॉक्स नं.203 नाला सोपारा, तीसरी ताली, दरमियाना तथा उपन्यास रहे हैं। हिंदी साहित्य में किन्नर समुदाय को केंद्र में रखकर 2002 में प्रकाशित डॉ.नीरजा माधव जी का यमदीप पहला उपन्यास माना जाता है।इस उपन्यास के पश्चात ही किन्नर विमर्श संबंधी अन्य उपन्यासों का निर्माण हुआ है।किन्नर समुदाय के लोग मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं,जिनमें-बचुरा,नीलिमा,मनसा तथा हंसा ।सभी प्रकार के किन्नर रेलवे,बस स्टॉप,सड़क, मोहल्ला,गली,चौराहा तथा अन्य स्थानों पर ताली पीट-पीट कर भीख मांगते हैं।साथ ही कई किन्नर समुदाय अन्य काम भी करते हुए नजर आते हैं।अन्य समाज की ही तरह किन्नर समुदाय के रीति-रिवाज,परंपरा,लोकविश्वास तथा उनकी लोक संस्कृति होती है।चारों प्रकार के किन्नरों का अपना-अपना एक मुखिया होता है। इस मुखिया को गुरु मानते हैं। इस गुरु के इशारे पर ही सभी किन्नरों के समुदाय चलते हैं।

Doi Link – https://doi.org/10.69758/GIMRJ2406IIV12P002

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