भाई गुरदास जीवन एवम रचनाएं : वार ‘पहली‘ के विशेष संदर्भ में

भाई गुरदास जीवन एवम रचनाएं : वार पहलीके विशेष संदर्भ में

हसनदीप सिंह

डॉ. राजेश शर्मा 

सार –  भारत अपनी विशाल परंपरा के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। यहां अलग अलग धर्मो और जातों के लोग रहते हैं। जो अलग अलग धर्म से संबंधित अपने संतों, गुरुओं, भक्तों की आराधना करते हैं। ऐसे ही एक आदरणीय गुरसिख जिनका नाम सिख धर्म में बहुत आदर और सम्मान से लिया जाता है जिन्होंने अपना पूरा जीवन गुरु घर की सेवा और सिमरन में लगा दिया। जिन्हें हरमंदर साहिब दरबार साहिब (अमृतसर) में बाबा बूढ़ा जी के बाद दूसरे मुख्य ग्रंथी (सेवादार) की उपाधि  प्राप्त थी। भाई गुरदास जी ने अपनी सेवा और अपनी रचनाओं के जरिए समाज को एक नई दिशा प्रदान की। उन्होंने  पंजाबी जगत के लिए भी बहुत ही सराहनीय कार्य किए। अपनी बाणी में उन्होंने नैतिक मूल्यों पर मनुष्य का ध्यान केंद्रित किया। उनकी रचनाएं ऐतिहासिक शोध के लिए बहुत ही बेहतरीन संसाधन है। इनकी वारों को सिख धर्म में कीर्तन रूप में बहुत ही सहज भाव से गया जाता है। इस शोध पत्र में भाई गुरदास जी के जीवन एवम रचनाओं पर चर्चा की गई है और शोध पत्र उनके द्वारा रचित वारों में से सिर्फ पहली वार पर ही आधारित है ।

Keywords: भाई गुरदास, वार, सिख धर्म, कीर्तन, पौंडी

Doi Link – https://doi.org/10.69758/GIMRJ2406IIV12P003

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