राष्ट्र– राज्य व्यवस्था की चुन्नोतीया
प्रा. डॉ. अतुल नारायण खोटे
स्व. पुष्पादेवी पाटील कला व विज्ञान महाविद्यालय रिसोड,
जिल्हा वाशिम. पिन 444506
मो.नं. 9822600427
Email – atulkhote11@gmail.com
सारांश-
अब तक के वर्णन से स्पष्ट है कि प्राचीन समय से लेकर अब तक राष्ट्रीय सुरक्षा कि अवधारणा बदलती रही है. प्रथम विश्व युद्ध के पहले जो राष्ट्रीय सुरक्षा कि अवधारणा थी, वह अंतरराष्ट्रीय राजनीती के बदलते हुय परिस्थिती के मुताबिक अपने स्वरूप में बदलाव लाया है. आज जो राष्ट्रीय सुरक्षा कि अवधारणा है, वह कल किस रूप में रहेगी, स्पष्ट नही कहा जा सकता. यह पूर्णता: स्पष्ट हॉ चुका हैकि राष्ट्रीय सुरक्षा कि अवधारणा आंतरराष्ट्रीय परिस्थिती से जुडी हुई है.
हम यह कह सकते हैं कि राष्ट्र-राज्य व्यवस्था अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है. राजनीतिक अस्थिरता और लोगों के संकीर्ण नजरिए ने भी इस व्यवस्था की नींव को हिलाया है. मुख्य तौर पर लोगों की भावनाएं है जो कभी-कभी पृथकतावादी दृष्टिकोण रखकर राष्ट्र को तोड़ने का प्रयास करती है. अत: राष्ट्र-राज्य व्यवस्था को कायम रखने के लिए लोगों की मानसिकता में परिवर्तन के साथ-साथ राजनीतिक स्थिरता में वृद्धि करना भी है और आंतराष्ट्रीय राजनीती में निर्माण हुये वाद – लवाद के माध्यम से सुल्झाने कि जरुरत है.
कीवर्ड – राष्ट्र, राज्य, अंतरराष्ट्रीय, वैश्वीकरण, उदारीकरण, रासायनिक हथियार.
DOI link – https://doi.org/10.69758/GIMRJ/2503I01S01V13P0016
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