18वीं शताब्दी में रूहेलखण्ड की सामाजिक एवं आर्थिक दशा
संदीप गंगवार, प्रोफेसर (डॉ0) राधेश्याम सरोज
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शोध छात्र, आर0आर0पी0जी0 कॉलेज अमेठी
सम्बद्ध
डॉ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या
प्रोफेसर, इतिहास विभाग, आर0आर0पी0जी0 कॉलेज अमेठी
सारांश
18वीं शताब्दी के बाद रूहेलों के अधीन रूहेलखण्ड के सामाजिक और आर्थिक ढाँचे का व्यापक विकास हुआ। रूहेलों ने इस क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करने के उपरांत यहाँ के कृषि, व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा दिया। उन्होंने किसानों को जमीदारों के उत्पीड़न और अत्याचार से बचाया। रूहेलों के प्रयासों से क्षेत्र की आय तो बढ़ी ही साथ ही साथ सामाजिक स्तर पर भी किसानों और ग्रामीणों की दशा में सुधार हुआ। इस समय रूहेलखण्ड में अनेक व्यापारिक केन्द्र विकसित हुए जहाँ से नेपाल, तिब्बत, कश्मीर, दिल्ली, आगरा और अवध के क्षेत्रों में व्यापार होता था। निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में अनाज तथा वन उपज थी। रूहेलखण्ड के अन्तर्गत ग्रामीण सामाजिक संरचना में जमींदार, मुकद्दम, साधारण किसान तथा भूमिहीन सेवा करने वाली जातियां सम्मिलित थीं। किसानों के कई वर्ग थे।
बीज शब्द:- दोआब, तराई, खुदकाश्त, पाही, नेगी, इजारेदार, मुकद्दम, चुपरबंद, आसामी आदि।
DOI link – https://doi.org/10.69758/GIMRJ/2411IV04V12P0008
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