डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर की विचारधारा से शिक्षा का स्वरूप
अमितकुमार गणेश शिंगणे
संशोधक विद्यार्थी
एम. इ. एस. कॉलेज मेहकर,
जिल्हा बुलढाणा.
सारांश –
डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि एक विचार हैं| जो की प्रेरणादायी और प्रवाहात्मक हैं| डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर एक ऐसे मानव थे जो समाज के हर एक क्षेत्र मे उन्नती लाना चाहते थे| देश के हर एक व्यक्ति को उनके समाज के प्रवाह में लाना चाहते थे|जिसमे समाज मे फैला जातिभेद, उच्च नीच का भाव, गरीबी-अमीरी, छुआछूत ये सारे भेदभाव नष्ट होकर समाज एक ही छत्र के नीचे के भाई चारे के साथ रहे| मगर इस सपने को सच करना इतना आसान नहीं था| इसलिये डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर ने गरीब, पिछले वर्ग और अछूत को समाज के मुख्य धारा मे लाने के लिए एक अस्त्र दिया जिसका नाम था शिक्षा| डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर का कहना था की, “शिक्षा शेरनी का दूध है“ इसलिये समाज के हर व्यक्ति को शिक्षा का हक होना चाहिये| शिक्षा का हक समाज के हर एक व्यक्ती को मिलने के लिए उन्होंने भारतीय संविधान मे इसलिये प्रावधान भी किया हैं| आजकी भारतीय शिक्षा नीती और डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर शिक्षा निती कें बारे में क्या चाहते थें| इस विषय पर विचार विमर्श इस शोधपत्रिका में किया गया हैं|
DOI link – https://doi.org/10.69758/GIMRJ/2410III02V12P0004
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