हठयोगप्रदीपिका और घेरण्डसंहिता के अनुसार प्राण और प्राणायाम की अवधारणा
राहुल बलूनी
शोधार्थी
महाराजा अग्रसेन हिमालयन गढ़वाल यूनिवर्सिटी
डॉ. जन्मेजय
सहायक प्राध्यापक
महाराजा अग्रसेन हिमालयन गढ़वाल यूनिवर्सिटी
शोध सारांश–
प्राण, जिसे अक्सर महत्वपूर्ण जीवन शक्ति माना जाता है, सूक्ष्म ऊर्जा का प्रतीक है जो ब्रह्मांड दोनों में व्याप्त है और मानव शरीर के भीतर जीवन को सजीव करती है। इसमें न केवल सांस बल्कि शारीरिक कार्यों और मानसिक क्षमताओं के पीछे की सूक्ष्म शक्ति भी शामिल है। यह ऊर्जा नाड़ी नामक जटिल मार्गों से प्रवाहित होती है, जो शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्पष्टता और आध्यात्मिक कल्याण को प्रभावित करती है। प्राणायाम, नियंत्रित श्वास का अभ्यास, इस महत्वपूर्ण ऊर्जा को विनियमित और सुसंगत बनाने के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। साँस लेने, छोड़ने और रोकने की विशिष्ट साँस नियंत्रण तकनीकों के माध्यम से, प्राणायाम का उद्देश्य नाड़ियों को शुद्ध करना, प्राणिक प्रवाह को अनुकूलित करना और संतुलन प्राप्त करना है। इसके लाभ शारीरिक स्वास्थ्य से परे हैं, मन को शांत करने, ध्यान केंद्रित करने और ध्यान की गहरी स्थिति को सुविधाजनक बनाने में सहायता करते हैं। प्राण और प्राणायाम मिलकर योग के अभिन्न अंग बनते हैं, जो समग्र कल्याण और आध्यात्मिक विकास के लिए जीवन शक्ति का उपयोग करने के मार्ग प्रदान करते हैं।“
Keyword- हठयोगप्रदीपिका, घेरण्डसंहिता, प्राण और प्राणायाम की अवधारणा
DOI link – https://doi.org/10.69758/GIMRJ/2409III07V12P0006
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