संगीत एवं मनोवैज्ञानिक उत्कृष्टता
डॉ. गुरदियाल सिंह
अस्सिटेंट प्रोफेसर
संगीत विभाग
पंजाब युनिवर्सिटी, चण्डीगढ़।
मो. 9814724365
E-mail : namdhari24365@gmail.com
सारांश
संगीत की संवादात्मक प्रक्रिया का एक और अपेक्षित लक्ष्य मनोवैज्ञानिक उत्कृष्टता है अर्थात् मानव मन को सामान्य से उत्कृष्ट बनाना। मानव एक संवेदनशील प्राणी है, वह सदैव अपने आस-पास के परिवेश, वातावरण, घटनाओं तथा परिस्थितियों से प्रभावित होता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिवेश आदि का ज्ञान, बोधेन्द्रियों पर पड़ने वाला आघात या प्रभाव स्नायुविक शक्ति का रूप धारण करके जीवन का अंग बन जाते हैं। उनसे किसी न किसी प्रकार समायोजन स्थापित करना हमारे लिए आवश्यक हो जाता है। यह ऐसा भी हो सकता है, जिसे हम पसन्द करें अथवा नापसन्द, उसे अपने स्नायुमण्डल से बाहर रखना चाहिए। लेकिन एक बार प्रवेश पा लेने के बाद आघात्मक प्रभाव जीवन का अंग बन जाते हैं। आघातों से उत्पन्न इस मानसिक समायोजनाओं का घटना चक्र स्नायुमण्डल में घटित होता है जो कि संवेदनाओं का रूप धारण कर लेती है। अतः स्नायुमण्डल पर पड़ने वाले प्रभाव से ही संवेदनात्मक प्रकिया का जन्म होता है। संवेदना मानव के अनुभव करने वाली एक मानसिक प्रक्रिया है मानव जिन संवेदनाओं को ग्रहण करता है वे है-
बीज शब्द (Keyword) : दृष्टि संवेदना, श्रवण संवेदना, ध्यान संवेदना, स्वाद् या वाचा संवेदना और स्पर्श संवेदना।